प्रेम रावत जी:
सभी लोगों को मेरा नमस्कार!
और एक बात है कि —
भूले मन समझ के लाद लदनिया।
थोड़ा लाद, बहुत मत लादे, टूट जाए तेरी गरदनिया।।
भूखा होय तो भोजन पा ले आगे हाट ना बनिया।
प्यासा होय तो पानी पी ले आगे देश ना पनिया।।
कहत कबीर सुनो भाई साधो काल के हाथ कमनिया।
क्या कह रहे हैं कबीरदास जी ?
कह रहे हैं कि जो करना है वो अब कर ले। आगे क्या होगा किसी को नहीं मालूम। क्या है आगे ? किसी को नहीं मालूम। यही बात जब आगे दोहराई जाती है तो लोगों को डर लगता है, क्या होगा! भाई, विश्वास करने की जरूरत है, समझने की जरूरत है कि किसने ये सारी रचना की और इसके अंदर जो कुछ भी सुंदरता है वो सब उपलब्ध कराई। जो मनुष्य को जिन चीजों की जरूरत थी या जिन चीजों की जरूरत है, वो चीजें सब मौजूद हैं। तो डर कैसे भी आ जाता है, क्योंकि जब आदमी समझता नहीं है, जब मनुष्य समझता नहीं है कि क्या हो रहा है ये वो भूल जाता है कि उस पर कितनी दया है। ये वो भूल जाता है कि जो कुछ भी हुआ इस जीवन के अंदर, वह एक मौका है। और मौका है आनंद लेने का। कल का नहीं है, परसों का नहीं है, नितरसों का नहीं है, पर जबतक यह स्वांस आ रहा है और जा रहा है, तबतक वो मौका है। और उसका पूरा-पूरा लाभ उठाना ये हमारा फर्ज़ बनता है।
तो इच्छायें तो बहुत हैं मनुष्य की। बहुत चीजें चाहता है वो। और ये भी कहा है —
चाह गई चिंता मिटी मनुवा बेपरवाह,
जिनको कछु न चाहिए सोई शहंशाह।
अगर शहंशाह बनना है तो क्या — जो चाह गई चिंता मिटी
पर मनुष्य चिंता जब करता है तो वो भूल जाता है कि क्या-क्या उसके पास है। जब वो चिंता करता है, जब वो देखना शुरू करता है उन चीजों को, जो वो समझता है कि उसके पास नहीं हैं। जिस आनंद की मनुष्य कोशिश करता है अपने जीवन में, वो सच्चा आनंद उसके अंदर हमेशा है। चाहे कुछ भी हो, चाहे परिस्स्थितियां बदलें। अब ये जो मौका है, ये डरने का नहीं है। ये हिम्मत से काम लेने का है। आंखें खोलकर चलने का है। लोग हैं जो डरते हैं — अभी किसी ने मेरे को एक चिट्ठी भेजी, तो उसमें लिखा हुआ है कि "मेरी माँ भी अब नहीं रही.... लोग मेरी माँ को सताते थे। और ये सब होने वाबजूद भी वो आपके ज्ञान को अच्छी तरीके से समझना चाहती थी और उसका पालन करती थी, तो उसके साथ ऐसा क्यों हुआ ?"
उसके जीवन में क्या है ये किसको मालूम है ? एक तो उसको मालूम है जिसका जीवन है। और ये एक उसको मालूम है जिसने ये जीवन दिया है। देखिये, सबसे बड़ी बात है लोग चाहते हैं कि जब रोशनी आये, तो रोशनी उनको वो दिखाए जो वो देखना चाहते हैं। पर रोशनी ये नहीं करती है। रोशनी वो दिखाती है, जो है। रोशनी कुछ नहीं बनाती है अपने में। ज्ञान रोशनी है। ज्ञान दिया जो है, जलता हुआ दिया है, जो रोशनी दे। क्या दिखाई देता है उसमें ? क्योंकि मनुष्य चाहता है अँधेरा रहे ताकि वो देख न सके। और अँधेरे के बारे में भी कुछ कहा जाए। तो अँधेरा भी एक ऐसी चीज है कि जैसे अँधेरा होता है आँख देखना चाहती है। कुछ भी हो आँख देखना चाहती है। तो जो आईरिस है आँख का वो खुलने लगता है, खुलने लगता है, खुलने लगता है, खुलने लगता है, तो वो इतना खुल जाता है कि अगर थोड़ी-सी भी रोशनी उस पर पड़े तो उसको चमका देने वाली बात होती है।
कई बार इतनी देर अँधेरा रहे, इतनी देर अँधेरा रहे तो फिर जब रोशनी होती है तो आदमी के लिए वो ठीक नहीं है। वह आँखें बंद करने लगता है। क्या हमारे जीवन के अंदर वही हो रहा है कि हम देख नहीं पा रहे हैं और अँधेरे के इतने आदी बन गए हैं कि जो प्रकाश है जब वो आता है तो वही हमको देखने के लिए रोक रहा है, उसी से चौंक जाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। मनुष्य के जीवन के अंदर सबसे बड़ी बात कि जबतक तुम जीवित हो तुम्हारे जीवन के अंदर एक आशा होनी चाहिए। निराशा नहीं, आशा। जबतक तुम जीवित हो तो तुम उस चीज को देखो जो सत्य है, असत्य को नहीं। अगर सत्य को देखोगे तो तुमको असत्य से डरने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
परन्तु नजर कहां होनी पड़ेगी, कहां होनी चाहिए ? सत्य पर होनी चाहिए, असत्य पर नहीं। लोग हिम्मत हारने लगते हैं। लोग समझने लगते हैं अब क्या होगा! क्या होगा! हिम्मत से काम लो; डरो मत। डरो मत। जबतक तुम जिन्दा हो तबतक कोई न कोई चीज तुम्हारे अंदर है जिससे कि तुम अपने जीवन के अंदर समझ सकते हो कि मैं कितना भाग्यशाली हूँ। लोग तो — "मैं अभागा हूँ। मेरे साथ ये हो गया, मेरे साथ ये हो गया, मेरे साथ ये हो गया!" परन्तु जबतक यह स्वांस आ रहा है, तुम भाग्यशाली हो। जबतक तुम जीवित हो तबतक भाग्यशाली हो। और अगर तुम ही डरने लगे तो तुम्हारे आस-पास जितने भी हैं, जो तुमसे प्रेम करते हैं, वो तो डरेंगे ही। और अगर वो भी डरने लगे और तुम भी डरने लगे और सभी डरने लगे तो डर बढ़ेगा। हिम्मत कौन करेगा ? जब समय अच्छा नहीं होता है, तब हिम्मत की जरूरत है, प्रकाश की जरूरत है और वो प्रकाश तुम्हारे अंदर है। उसको समझो, उसको जानो, उसको देखो। और यह मौका है जबतक तुम जीवित हो मैं ये कैसे कह सकता हूँ।
क्योंकि जबतक यह स्वांस आ रहा है जा रहा है, वो कृपा है उसको स्वीकार करो। तो अपने जीवन के अंदर ध्यान से, ख्याल से रहो ताकि तुम बीमार न पड़ो। और अगर बीमार पड़ भी गए तो हिम्मत से काम लो, ये नहीं डर से। क्योंकि जब डरोगे तो तुम्हारा शरीर और कमजोर होगा। डर से नहीं, हिम्मत से काम लो।
तो सभी लोगों को मेरा नमस्कार!