*💐💐उपयुक्त समय💐💐*
अमावस्या का दिन था।
एक व्यक्ति उसी दिन समुद्र-स्नान करने के लिए गया किन्तु स्नान करने के बजाय *वह किनारे पर बैठा लहरों के शान्त होने का इंतज़ार करने लगा!*
जब किसी ने पूछा, *“स्नान करने आये हो तो किनारे पर ही क्यों बैठे हो? स्नान कब करोगे?*
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि *“इस समय समुद्र अशान्त है। उसमे ऊँची-ऊँची लहरे उठ रही है; जब लहरे बंद होगी और जब उपयुक्त समय आएगा तब मैं स्नान कर लूंगा। ”*
पूछने वाले को भी हँसी आ गयी । वह बोला, *“भले आदमी ! समुद्र की लहरें क्या कभी रुकने वाली हैं? ये तो आती रहेंगी!*
*"समुद्र-स्नान तो लहरों के थपेड़े को सहकर ही करना पड़ता है। नहीं तो स्नान कभी नहीं हो सकता।”*
यह हम सभी की बात है। हम भी सोचते है कि *‘जब सभी प्रकार की अनुकूलताये होगी तभी अपनी संकल्पना के अनुरूप कोई सत्कर्म करेंगे किन्तु सभी प्रकार की अनुकुलताये जीवन में किसी को कभी मिलती नहीं।*
यह संसार एक समुद्र की तरह है जिसमे बाधा रूपी तरंगे तो हमेशा उठती ही रहेगी। एक परेशानी दूर होने पर दूसरी आएगी। जैसे वह व्यक्ति स्नान किए बिना ही रह गया, उसी प्रकार *सभी प्रकार की अनुकूलता की राह देखने वाले व्यक्ति से कभी सत्कर्म नहीं हो सकता।*
सत्कर्म या किसी और शुभ कार्य के लिए उपयुक्त समय की राह मत देखो। प्रत्येक दिन और प्रत्येक क्षण सत्कर्म के लिए अनुकूल है।
*‘कोई परेशानी नहीं रहेगी तब सत्कर्म करूँगा’* – ऐसा सोचना निरी मूर्खता है।
कहा भी है कि -
*प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै:*
*प्रारभ्य विघ्नविहिता विरमन्ति मध्या:।*
*विघ्नै: पुन:पुनरपि प्रतिहन्यमाना:*
*प्रारभ्य चोत्तमजना न परित्यजन्ति ।।*
*विघ्न के भय से जो कार्य की शुरुआत ही नहीं करते वे निम्नकोटि के पुरुष है। कार्य का आरम्भ करने के बाद विघ्न आने पर जो रूक जाते हैं, वे मध्यम पुरुष है। परंतु कार्य के आरम्भ से ही, बार बार विघ्न आने पर भी जो अपना निश्चित किया कार्य नहीं छोड़ते, वही उत्तम पुरुष होते है*।
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*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
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